हालात बन गए हैं जब हम लोग कहते हैं कि डेमोक्रेसी को खतरा है लोकतंत्र को खतरा है देश के अंदर, बार बार हम बोलते हैं क्यों बोलते हैं, सारी संस्थाएं दबाव के अंदर हैं, कार्यपालिका हो, न्यायपालिका हो, विधायिका हो, और जितनी संस्था हैं वो दबाव के अंदर हैं और हम सब चाहेंगे कि यह सब संस्थाएं क्रेडिबल संस्था हैं इनकी क्रेडिबिलिटी बनी रहे, चाहे वो आईटी इनकम टैक्स या सीबीआई या ईडी हो और साथ में इलेक्शन कमीशन। इलेक्शन कमीशन पर पूरी डेमोक्रेसी का भविष्य टिका हुआ है, इलेक्शन कमीशन की निष्पक्षता सबसे जरूरी है, उसी के साथ में फ्यूचर जुड़ा हुआ है डेमोक्रेसी का, राहुल गांधी जी ने जो मामला उठाया है और कहा कि एटम बम होगा क्यों कहा, एटम बम का असर भी एक इलाके में पड़ता है पर ये तो जो है इसका असर तो पूरे देश की 140 करोड़ की जो आबादी है उस पर पड़ने वाली बात है क्योंकि चुनाव में अगर रिगिंग संस्थागत तरीके से करेंगे इलेक्शन कमीशन और सत्तारूढ़ पार्टी मिल जाएँगे तो फिर डेमोक्रेसी कहाँ रहेगी ? ये बहुत खतरनाक खेल हो रहा है देश के अंदर जिसकी तरफ राहुल गाँधी ने देशवासियों को सचेत किया है एक प्रकार से, ये कोई मामूली , कल का प्रेजेंटेशन राहुल गाँधी का मामूली नहीं था, ये पूरे मुल्क के लोगों को एक प्रकार से मैसेज देना था कि क्या- क्या हो रहा है, जो उन्होंने चार पांच पॉइंट कल बताए थे किस प्रकार से रिगिंग या किस प्रकार से इरेगुलेरिटी हो रही है,
अब इलेक्शन कमीशन को चाहिए था कि निष्पक्ष होता वो, निष्पक्षता पर संदेह तो जैसे ही कानून पास किया मोदी जी ने, इलेक्शन कमीशन को कैसे सेलेक्ट किया जाए , तभी पैदा हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक प्राइम मिनिस्टर, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई सुप्रीम कोर्ट के वो होंगे कमिटी के अंदर वो चयन करेंगे इलेक्शन कमिश्नर का, अगर वो प्रक्रिया होती तो न तो इतने संदेह पैदा होते, न सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर के लिए जाना पड़ता, न राहुल गाँधी जी को ये नौबत आती कि वो ये सब बातें बताते , स्थिति ही नहीं बनती ये, पर जिस प्रकार से खेल हुआ, कि चार दिन में छह दिन में कानून नया बन गया और अमित शाह जी लग गए उसके अंदर सीजेआई की जगह अब सीजेआई को आप अगर सीजेआई को हटा कर के कमेटी में से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को हटाकर के अगर अमित शाह गृह मंत्री को लगाएंगे तो आप सोच सकते हो लोग क्या सोचेंगे, संदेह पैदा नहीं होगा क्या, स्वाभाविक है, संदेह पैदा उस दिन से ही हो गया। उसके बाद में जो हम देखते हैं रवैए बदले हुए हैं इलेक्शन कमिशन के, रवैया बदल गया, अभी चालीस पचास साल से हम लोग देख रहे हैं इलेक्शन कमीशन पर कोई पक्षपात का आरोप भी लगाता था तो वो सफाई देता था, ये काम होता है,कोई भी व्यक्ति अगर मान लीजिए कोई भी व्यक्ति अगर मान लीजिए आरोप लगाता है, राहुल गांधी तो नेता प्रतिपक्ष भी हैं अगर मान लो आर्डिनरी एक आम आदमी वो भी अगर आरोप लगाए तो इलेक्शन कमीशन की ड्यूटी है कि पब्लिक में जो एक अगर परसेप्शन बन रहा है तो उसको साफ करें, ये इलेक्शन कमीशन की ड्यूटी है।
देश का नागरिक भी अगर आरोप लगा दे, छोटी पार्टी बड़ी पार्टी कोई आरोप लगा दे तो राहुल गांधी तो नेता प्रतिपक्ष भी है लोकसभा के अंदर वो आरोप लगा रहे हैं आप बजाए इसके ये कहने के हम इसकी पड़ताल कर लेंगे, बेईमानी हुई तो हम एक्शन करेंगे इसके खिलाफ तब तो लगता आपकी ईमानदारी, बल्कि आप यूपी में कर्नाटक में जो वहां पर इलेक्शन कमिश्नर हैं उनके थ्रू आप धमकी दिलवा रहे हो राहुल गांधी को, आप शपथ पत्र दो उसके बाद हम जांच करेंगे अरे शपथ पत्र तो राहुल गांधी को नही, राहुल गांधी शपथ पत्र क्या देंगे ? वो तो संवैधानिक पद पर वैसे ही हैं संविधान की शपथ लिए हुए हैं इलेक्शन कमीशन में अगर नैतिक साहस है और ईमानदारी है उसको आम जनता के लिए शपथ पत्र जारी करना चाहिए कि हम शपथ के साथ कहते हैं कोई जगह गड़बड़ी नहीं है देश के अंदर, इलेक्शन कमीशन को आगे आना चाहिए, विश्वास जम जाता, वो दे सकता है शपथ पत्र ? ये जो स्थिति बनाई देश के अंदर वो बहुत खतरनाक है पूरा देश चिंतित है पूरा सोशल मीडिया तो भरा पड़ा है जितने आपके इन्फ्लूएंसर हैं वो तमाम लोग जो है इस पर लगे हुए हैं और जो मुख्य धारा का मीडिया है उसको तो हम देख रहे हैं ग्यारह साल से जब से मोदी जी आए हैं उनकी सरकार आई है इतना भय पैदा कर दिया है इनके पूरे शासन के अंदर क्या कहें, भय रहित कौन है ये ढूंढना पड़ेगा।
आजकल एक नया देख रहे हैं हम लोग, मैं भी एक बार गया था, बाद में तो पता नहीं क्या क्या हुआ, इलेक्शन कमिश्नर कह रहा है मैं तय करूंगा किस पार्टी से किस से मैं मिलूं बाहर बिठा दिया सबको, सबसे मिले भी नहीं है अभी, सबने बाहर आकर कहा हमारे साथ दुर्व्यवहार हुआ है ये मैं पहली बार देख रहा हूं, पहले मैं एक बार खुद गया था तब भी उनकी बात की टोन जो थी वो ठीक नहीं थी तो मैंने देखा बाय दी वे गलतफहमी हो गई होगी मुझे, इस प्रकार से वो बात कर रहे थे।
अब इलेक्शन कमीशन जो बिल्कुल निष्पक्ष होना चाहिए कोई पार्टी के लोग आएं बातचीत करें बात सुन लें उनकी उस पर जवाब नहीं देना नहीं दे बाद में जवाब दे देवे सोचकर के कानून देखकर के पर आप दुर्व्यवहार करो कि कौन अंदर आएगा कौन नहीं आएगा किसको मैं बुला रहा हूं, पत्रों का जवाब जिस लेंगुएज में चाहे खड़गे साहब को दो चाहे राहुल गांधी को दो या किसी को दो वो जो भाषा है वो भी अपने आप में मैसेज देती है कि इलेक्शन कमीशन निष्पक्ष नहीं है , जिस मुल्क में ये बात हो तो बहुत खतरनाक बात है।