राजस्थान विधान सभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि ज्योतिष विद्या भारत में ही उत्पन्न हुई और यहीं से सम्पूर्ण विश्व में इस विद्या का प्रचार-प्रसार हुआ है। यह विद्या अपने आप में शुद्ध गणित है। इसके अध्ययन के लिए अन्य देशों के लोग भारतीय विद्ववानों से सम्पर्क करते है। यह भारत के लिए गौरव है। श्री देवनानी ने ज्योतिषियों का आव्हान किया है कि वे भारतीय सनातन संस्कृति के वाहक बने। देवनानी गुरूवार को यहां नारायण सिंह सर्किल स्थित इन्द्रलोक सभागार में सर्वशक्तिमान अन्तरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। देवनानी ने स्वस्ति वाचन के गुंजायमान के साथ दीप प्रज्जवलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया। सम्मेलन में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के ज्योतिष विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
देवनानी ने गृह नक्षत्रों की चाल से सटिक भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषों को वंदन करते हुए कहा कि भारत में विकसित हुई गृह नक्षत्रों की गणना पद्धति से ब्राहमाण्ड की रीति-नीति के साथ पंचांग की रचना विशेषज्ञों द्वारा की जाती है। भारत के शून्य के अविष्कारक आर्यभट्ट जैसे विद्वान के द्वारा 'आर्यभट्टीयम' के माध्यम से गणना सिखाई तो प्रख्यात खगोलविद वराहमिहिर ने अपनी कृति 'सिद्धान्तपंचिका' के माध्यम से कालगणना की विधि लोगों को सिखाई थी। उन्होंने कहा कि इनके अलावा ब्रह्मगुप्त की कृति 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त', लल्ल का 'शिष्यधीवृद्धदि', श्रीपति का 'सिद्धान्तशेखर', भास्कराचार्य का 'सिद्धान्तशिरोमणि', गणेश का 'ग्रहलाघव' तथा कमलाकर भट्ट का 'सिद्धान्त-तत्व-विवेक' भारतीय ज्योतिष एवं गणित की असाधरण कृतियां हैं।
देवनानी कहा कि इस सम्मेलन में होने वाली चर्चाओं से वास्तु के वैज्ञानिक स्वरूप और योग के साथ जीवनशैली का भारतीय सनातन परम्परा के अनुसार लोगों को बताये। उन्होंने कहा कि गीता के कर्म के सिद्धान्त को लोगों को सदैव याद रखना होगा। उन्होंने कहा कि ज्योतिषि कुण्डली, हस्तरेखा और कर्म की त्रिवेणी का संगम बने और अनुयाइयों को जीवन में कर्म की प्रधानता से सफलता का मार्ग समझायें। श्री देवनानी ने कहा कि छोटी काशी में हो रहे सम्मेलन के सार्थक परिणामों का लाभ सम्पूर्ण मानव जाति को मिले इसके लिए सभी मिल-जुलकर प्रयास करें। समारोह में ज्योतिष के जाने माने विशेषज्ञ सतीश शर्मा, अजय भाम्बी, के.ए.दुबे, पुरूषोत्तम गौड़ और सुरेश मिश्रा मौजूद थे।