प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने कहा कि अतिवृष्टि के कारण प्रदेश की राजधानी सहित अन्य शहरों में पानी के भराव के कारण लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, ऐसे में सभी का कर्तव्य है कि लोगों का जीवन और दैनिक कार्य सुचारू चल सके इसके लिये व्यवस्था की जाये तथा सरकार से लोग मदद की अपेक्षा करते हैं किन्तु राजस्थान की सरकार प्रदेश में लोगों के दु:ख-तकलीफ दूर करने की बजाए दिल्ली में हाजिरी दे रही है। मुख्यमंत्री केन्द्रीय मंत्रियों, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री से मिल रहे हैं, किन्तु राजस्थान की जनता को नहीं सम्भाल रहे हैं। राजस्थान में ऐसा शासन चल रहा है कि ना तो ब्यूरोक्रेट, ना ही प्रभारी मंत्री फील्ड में जा रहे हैं, केवल बयानबाजी से शासन चलाया जा रहा है, आश्चर्य की बात है कि बरसात में एक ओर तो लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, दूसरी ओर मुख्यमंत्री जयपुर आकर 100 गाडिय़ों के काफिले के साथ निकलकर अपनी रील बनवा रहे हैं जिससे लोगों को आवाजाही में और अधिक कष्ट का सामना करना पड़ रहा है, जबकि ऐसे समय में मुख्यमंत्री को निर्देश देने चाहिये कि प्रभारी मंत्री अपने-अपने प्रभार क्षेत्रों में जाकर नुकसान का जायजा लें और जनजीवन सामान्य करने के लिये सुझाव प्रस्तुत करें।
राजस्थान का दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री का समय प्रदेश की जनता के हित में निर्णय लेने की बजाए मुख्यमंत्री कार्यालय अथवा दिल्ली में प्रधानमंत्री की हाजिरी में व्यतीत हो रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भवन बनना और उनके रख-रखाव के कार्य सतत् प्रक्रिया है, सरकार का दायित्व है कि समय-समय पर भवनों का सर्वे करवाये और जहॉं अति-आवश्यक हो वहॉं बजट का इस्तेमाल कर मरम्मत के कार्य करवाये, लेकिन हो यह रहा है कि सरकार केवल कांग्रेस के कार्यों की समीक्षा कर रही है, अनर्गल बयानबाजी कर कांग्रेस को कोसने का काम हो रहा है, इसके अतिरिक्त कोई कार्य नहीं हो रहा है। शिक्षा विभाग में पिछले डेढ़ वर्ष में ना तो किसी शिक्षक की भर्ती हुई है और ना ही किसी भवन की मरम्मत हेतु राशि जारी हुई है, मंत्री ने झालावाड़ में दुर्घटना होने पर आनन्-फानन् में बयान दिया कि सरकार ने जर्जर स्कूलों के भवनों की मरम्मत के लिये 159 करोड़ रूपये बजट में दिये हैं, किन्तु जानकारी मिली है कि इसकी प्रशासनिक स्वीकृति तो बयान के भी सात दिन बाद जारी हुई और वित्तीय स्वीकृति व टेण्डर प्रक्रिया तो प्रारम्भ ही नहीं हुई, काम होना तो दूर की बात है। अच्छा होता कि मुख्यमंत्री घोषणा करते कि जितने भी जन उपयोगी भवन है जिनमें स्कूल, कॉलेज, प्राथमिक चिकित्सालय, सामुदायिक चिकित्सालय या सामुदायिक भवन इत्यादि की मरम्मत सरकार करवायेगी
डोटासरा ने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों के चुनाव को लेकर जो अधिकृत नहीं है, सरकार की ओर से वे ही बयान दे रहे हैं, जबकि राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त ने साफ कहा है कि सरकार की मंशा इन चुनावों को कराने की नहीं है, बार-बार सरकार बहानेबाजी कर रही है। उन्होंने कहा कि पंचायतों का, वार्डों का पुनर्गठन करते हुये कई महिने बीत गये किन्तु जून में डेड लाईन दी थी उसे गुजरे हुये भी लम्बा समय निकल गया है लेकिन राज्य सरकार ने अब तक निर्णय नहीं लिया है, जबकि यह कार्य 12 महिने पहले पूर्ण हो जाना चाहिये था। पंचायतों और नगर निकायों के कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व पुनर्गठन का कार्य कर लिया जाकर सही समय पर चुनाव होने चाहिये थे। उन्होंने कहा कि मई माह में वार्डों के पुनर्गठन की अधिसूचना जारी होनी चाहिये थी लेकिन अगस्त महिना आ गया, सरकार ने निर्णय ही नहीं लिया और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार नगर निकायों एवं पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों से पूर्व ओबीसी आयोग का गठन कर रिपोर्ट लेनी आवश्यक थी, किन्तु सरकार ने देरी से इस आयोग का गठन किया, अब ओबीसी आयोग कब तो अपनी रिपोर्ट देगा और कब निकायों व पंचायती राज संस्थाओं के लिये गजट नोटिफिकेशन जारी होगा इसका जवाब नहीं मिल रहा है।