चुनाव किसी भी राज्य में हो सभी पार्टी का केंद्र होती है - जनता। जनता के मुद्दे, उनकी मांग और भविष्य के वादों पर लड़ा जाता है चुनाव। लेकिन अब देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी में जनता के मुद्दों से ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा आ गया है और वो मुद्दा है पायलट और सीएम गहलोत में एकजुटता दिखाना।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले है और अगले महीने विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होना है। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है । पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी 6 सितंबर को भीलवाड़ा के गुलाबपुरा में एक रैली को संबोधित किया था। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने 10 सितंबर को टोंक के निवाई में एक रैली में हिस्सा लिया था। इससे पहले इसके बाद अब राहुल गांधी ने 24 सितंबर को जयपुर में हुई एक रैली में बीजेपी पर जमकर निशाना साधा।
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पिछले चुनाव के बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस के अंदर दो खेमे हो गए हैं और इन सभी रैलियों में कांग्रेस की ओर से एकजुटता दिखाने की भी कोशिश की गई। पार्टी में भी कार्यकर्ताओं में 2 भाग हो चुके हैं। पार्टी के कुछ नेता अशोक गहलोत तो कई सचिन पायलट के साथ नजर आते हैं। ये तो हम सभी देख चुके हैं बीते 5 सालों में पार्टी को राजस्थान में कई बार बगावत देखनी पड़ी है। एक बार तो मामला अदालत की चौखट तक जा चुका है। अब कांग्रेस के पास इस राजस्थान में बड़ी चुनौती चुनाव से ज्यादा सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एकजुट करना दिख रही है।
राजस्थान के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष गौरव गोगोई और एआईसीसी (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) के महासचिव केसी वेणुगोपाल लगातार राज्य का दौरा करते रहे हैं। राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा लगातार यहां रणनीतियां तैयार कर रहे हैं। इसका साफ उद्देश्य एकजुटता दिखाना है।
प्रियंका गांधी ने निवाई में रैली को संबोधित करते हुए सचिन पायलट के समर्थकों को साधने की भी कोशिश की थी। दरअसल अशोक गहलोत से मतभेदों के बाद सचिन पायलट को शुरुआत में नजरंदाज भी किया गया था। इस दौरान पायलट के बीजेपी में जाने की अटकलें खूब लगाई गईं। केंद्रीय नेताओं के रुख से सचिन पायलट के समर्थकों में इससे खासा गुस्सा भी रहा है। ये क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं और साल 2018 के विधानसभा में गुर्जर चेहरा होने की वजह से कांग्रेस को काफी फायदा भी मिला था।
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प्रियंका की रैली के पहले किसानों को संबोधित करते हुए कांग्रेस की रैली में मल्लिकार्जुन खरगे ने किसानों को संबोधित किया था। पिछले दिनों सचिन पायलट भी प्रदेश भर में किसान रैलियां करते आ रहे हैं। लेकिन वो खरगे की रैली में शामिल नहीं हो पाए थे।
इसी रैली में मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि साल 2020 में हुई बगावत के दौरान कांग्रेस के प्रतिबद्ध सदस्यों ने सरकार को गिरने नहीं दिया। कुछ लोगों को खरगे का ये बयान सचिन पायलट पर कटाक्ष लगा। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मतभेद जगजाहिर हैं। कांग्रेस पार्टी में ही रहते हुए सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा निकाली साथ ही सचिन पायलट ने कुछ हफ्तों में उनकी मांगे पूरी न होने पर सरकार को घेरने का खुला अल्टीमेटम दे दिया था।
सचिन पायलट ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच कराने, पेपर लीक मामले में बेरोजगारों को मुआवजा दिए जाने और आरपीएससी को भंग किए जाने की मांग की थी। उन्होंने इसके लिए 30 मई तक का समय दिया था।
हालांकि, दोनों नेताओं के लंबे समय से चले आ रहे विवाद को कांग्रेस आलाकमान चुनाव के दौरान मुद्दा नहीं बनने देना चाहता है। यही वजह थी कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने साल के शुरुआती महीनों में हुए मैराथन बैठक में सचिन पायलट को अशोक गहलोत से चर्चा की।
अब कयास इस बात के भी लगाए जा रहे हैं कि इस बार टिकट वितरण में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी जिन्होंने गहलोत सरकार को बचाया था।
ऐसे में देखना ये होगा राजस्थान में कांग्रेस नेताओं के बीच की आपसी खींचतान जो हर वोटर के दिमाग में बैठ गयी है, उसे गहलोत और पायलट कैसे दूर कर पाते हैं। साथ ही पार्टी अपनी एकता कैसे साबित कर पाएगी। वहीं राजस्थान में कुछ विधायकों के प्रति जनता में भी आक्रोश है। जो प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर को हवा दे सकती है। उन विधायकों को पार्टी टिकट देती है या नहीं ये भी बड़ा सवाल है। यदि कुछ विधायकों को पार्टी टिकट नहीं देती है तो वो बागी भी बन सकते हैं। उस वक्त कांग्रेस की एकता की असली परीक्षा होगी।