पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए और उसे बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लगाते हुए गंभीर टिप्पणी की। इसके अलावा जयपुर की बड़ी चौपड़ पर मीडिया से बातचीत में गहलोत ने कहा कि चुनाव आयोग राहुल गांधी से एफिडेविट मांग रहा है, जो उनके अनुसार बेहूदी की बात है।
गहलोत ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की नीयत खराब है और वह बीजेपी के दबाव में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह देश के लिए खतरनाक स्थिति है और देश को सच्चाई बताकर ही इस मामले को खत्म किया जा सकता है।
गहलोत ने कहा कि वर्तमान माहौल ऐसा है जैसे चीन और रूस में चुनाव आयोग होते हैं, लेकिन वहां चुनाव एकतरफा ही होते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या भारत भी उसी दिशा में जा रहा है?
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी द्वारा उठाए गए संविधान बचाओ और वोट चोरी के मुद्दों पर चुनाव आयोग को स्पष्टीकरण देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। गहलोत ने जोर देकर कहा कि हर नागरिक के वोट का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए और लोकतंत्र का सम्मान बनाए रखना आवश्यक है।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि देश की स्वायत्त संस्थाओं पर अब उंगली उठ रही है।
इसके अलावा जूली ने दावा किया कि राहुल गांधी ने वोट चोरी के आरोपों के साथ पर्याप्त सबूत पेश किए, लेकिन चुनाव आयोग इसका जवाब नहीं दे रहा। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 65 लाख वोट काट दिए गए और कई लोग एक से ज्यादा वोट डाल रहे हैं, जिन पर कार्रवाई जरूरी है। उन्होंने ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि ये किसी भी राजनीतिक दल के इशारे पर काम नहीं करनी चाहिए।
वहीं, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सरकार की उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पिछले पांच साल में 4 लाख सरकारी और 6 लाख निजी नौकरियों के सृजन का संकल्प लिया है। सीएम के अनुसार, 75 हजार से अधिक नियुक्ति पत्र वितरित किए जा चुके हैं और 1 लाख 68 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह प्रक्रिया युवाओं और बेरोजगारों को बड़ी राहत देगी।
इस पूरे विवाद के बीच गहलोत और जूली की टिप्पणियों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और लोकतंत्र की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं, सीएम ने रोजगार और विकास के मुद्दे पर सरकार की प्रतिबद्धता को सामने रखा। इसके अलावा अब देशभर में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है।