द नगर न्यूज़ डेस्क : लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राजस्थान में तगड़ा झटका लगा है. बीजेपी का क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाना तो दूर की बात है,बीजेपी ने आधी सीटें गंवा दी है. राज्य के पांच विधायकों के लोकसभा सांसद चुने जाने के चलते पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. जहां कांग्रेस के सामने अपने विधायकों की सीट बचाने की चुनौती है तो वही बीजेपी की कोशिश उपचुनाव के ट्रेंड तोड़ने की है
अगर पिछले दस सालों में हुए उपचुनाव की हम बात करे तो कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है कांग्रेस सत्ता में रही हो या फिर विपक्ष में उपचुनाव में बाजी मारती रही है. ऐसे में सत्ता की कमान संभाल रहे सीएम भजनलाल के लिए बीजेपी को उपचुनाव जिताने का जिम्मा है. प्रदेश की पांच विधानसभा सीटें देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, झुंझुनूं और दौसा खाली हुई हैं, जिन पर उपचुनाव होने हैं. देवली, झुंझुनूं और दौसा सीट कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा से खाली हुई है तो खींवसर सीट से विधायक रहे आरएलपी के नेता हनुमान बेनीवाल के सांसद चुने जाने की वजह से खली हो गयी है . चौरासी सीट से विधायक रहे भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत लोकसभा सांसद बन गए हैं, जिसके वजह से इस सीट पर भी उपचुनाव होने हैं
इन पांचो सीटों पर राजस्थान के कुछ दिग्गजों की साख दाव पर लगी है जहां एक तरफ कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट है तो दूसरी तरफ बीजेपी के दिग्गज किरोड़ी लाल मीणा है इन पांचो ही सीटों में सबसे बड़ी लड़ाई पायलट और किरोड़ी लाल मीणा के बीच है किरोड़ी ने लोकसभा चुनाव के बीच और नतीजों वाले दिन भी इस्तीफे देने की बात कही थी लेकिन किरोड़ी अपने दावे पर कायम नहीं रह पाए इसलिए अब दौसा झुंझुनू और देवली उनियारा सीट बीजेपी को जितना किरोड़ी बाबा की नाक का सवाल बन गया है वही इन सीटों पर पायलट की साख भी दाव पर लगी है क्युकी इन सीटों पर पायलट का खासा प्रभाव माना जाता है कांग्रेस को 11 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करवाने के बाद अब पायलट के सामने इन पांच विधानसभा सीटों को जितना भी एक बड़ी चुनौती है ऐसे में अब उनकी सीधी टक्कर किरोड़ी लाल मीणा से होगी
2014 से 2024 के बीच अब तक विधानसभा की 17 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 12 सीट पर जीत दर्ज की है. उप चुनावों के अपने पिछले प्रदर्शन से कांग्रेस उत्साह से भरी हुई है तो बीजेपी के लिए चिंता का सबक है.ये पांचो सीटें जीतने के लिहाज से बीजेपी के लिए कठिन मानी जा रही है. भले ही ये सभी पांचों सीटें बीजेपी के कब्जे वाली न हों, लेकिन सत्ता में रहते हुए उपचुनाव में न जीतना उसके लिए बड़ा झटके से कम नहीं होगा. इसीलिए बीजेपी इस बार किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.