संवाददाता- दीक्षा शर्मा
लोकेशन- जयपुर
राजस्थान में पूर्व मंत्री और वर्तमान तथा पूर्व विधायकों से जुड़े कई उच्च प्रोफ़ाइल मामलों में अदालतों ने मंगलवार को कड़ा रुख अपनाया है। भ्रष्टाचार, चुनावी हेराफेरी और दंगा भड़काने जैसे मामलों में यह स्पष्ट किया गया कि सार्वजनिक पद और विधायक होने का मतलब यह नहीं कि मामलों को वापस लिया जा सकता है या जमानत आसानी से मिल सकती है।
हाईकोर्ट ने 900 करोड़ रुपए के जल जीवन मिशन मामले में पूर्व मंत्री महेश जोशी की जमानत याचिका खारिज कर दी। इस मामले पर न्यायाधीश प्रवीर भटनगार ने कहा- सार्वजनिक पद का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार गंभीर अपराध हैं और इसमें किसी भी प्रकार की ढील नहीं दी जा सकती। इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि मंत्री होने के नाते महेश जोशी की जिम्मेदारी और अधिक थी। मामले में गिरफ्तार लोगों के बयानों में जोशी की संलिप्तता उजागर हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से दो सप्ताह में स्पष्ट करने को कहा कि क्या वह 25 अगस्त 2019 को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान दंगा भड़काने वाले आरएलपी के तत्कालीन दो विधायकों पुखराज गर्ग और इंदिरा बावरी के खिलाफ केस को वापस लेने की प्रक्रिया आगे बढ़ाना चाहती है।
हाईकोर्ट ने 10वीं कक्षा की मार्कशीट में हेराफेरी कर जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ने के मामले में विधायक हरलाल सहारण के खिलाफ दर्ज केस को वापस लेने के राज्य सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया। इसके अलावा अदालत ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक पद पर होने या अच्छी छवि होने के आधार पर कोई भी अपराध न्याय से बच नहीं सकता।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भारत आदिवासी पार्टी के बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले में अभियोजन की स्वीकृति दे दी। पटेल को मई में 20 लाख रुपए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उनके साथ चचेरे भाई विजय पटेल भी गिरफ्तार हुए।
इन घटनाक्रमों से स्पष्ट है कि राजस्थान में अदालतें भ्रष्टाचार, चुनावी हेराफेरी और दंगा भड़काने जैसे मामलों में किसी भी सार्वजनिक पद पर होने के बावजूद ढील नहीं दिखा रही हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख यह दिखाता है कि सार्वजनिक पद का दुरुपयोग गंभीर अपराध है और किसी भी प्रकार की राजनीतिक संरक्षण के आधार पर मामलों को वापस नहीं लिया जा सकता।