रामदेवरा- पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा की वरिष्ठ नेत्री वसुंधरा राजे सिंधिया बाबा रामदेव की नगरी रामदेवरा पहुंची, यहाँ उन्होंने बाबा रामदेव जी की समाधि स्थल पर विशेष पूजा-अर्चना की। राजे करीब 20 मिनट तक समाधि स्थल पर रुकीं और गहन श्रद्धा के साथ दर्शन किए, समाधि स्थल पर पुजारी अरुण छंगानी ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विशेष पूजा-अर्चना करवाई। इस अवसर पर समाधि समिति के गादीपति राव भोम सिंह तंवर ने परंपरानुसार चुनरी, सोल व पुष्पमाला पहनाकर वसुंधरा राजे का स्वागत-अभिनंदन किया।
रामदेवरा पहुंचने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने समाधि स्थल पर दर्शन करने आए श्रद्धालुओं से भी आत्मीय मुलाकात की और उनका हालचाल जाना, राजे की इस विशेष यात्रा को लेकर स्थानीय श्रद्धालुओं और समाधि समिति के पदाधिकारियों में उत्साह का माहौल देखा गया।
राजे ने आगे कहा, 'मेरी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत बाबा रामसा पीर के दर्शन से हुई थी. मुझे पहला आर्शीवाद देवता ने ही दिया था. इसके बाद सभी समाज के लोगों का आर्शीवाद मिला. मैं चुनाव जीती और कारवां आगे बढ़ता गया. मैं यकीन से कह सकती हूं कि रामसा पीर में हर किसी के मन की इच्छा हमेशा पूरी होती है. कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि थोड़ा समय लग जाए. मगर, विश्वास रखेंगे तो पूरी जरूर होती है. प्रॉब्लम तब होती है जब लोग विश्वास रखना छोड़ देते हैं. विश्वास हमेशा दृढ होना चाहिए और कभी डगमगाना नहीं चाहिए.'
दरअसल, पिछले कुछ दिनों में राजे ने 'वनवास', 'धैर्य' और अब 'परिवार' जैसे शब्दों का जिस तरह इस्तेमाल किया है, उसे राजनीतिक विश्लेषक उनके मौजूदा सियासी हालात से जोड़कर देख रहे हैं. उनके ये बयान सीधे तौर पर उनके समर्थकों और पार्टी आलाकमान, दोनों के लिए संदेश माने जा रहे हैं.
इससे पहले राजे ने 28 अगस्त की शाम धौलपुर में चल रही कथावाचक मुरलीधर महाराज की राम कथा का श्रवण करते हुए बड़ा बयान दिया था. वसुंधरा राजे ने कहा, 'आजकल की दुनिया बड़ी अजीब है, जिसको अपना समझा है, वो पराया भी हो जाता है. लेकिन अपने परिवार के लिए हर किसी की एक ड्यूटी होती है. ऐसे समय में परिवार की बहू, मां, बेटी को अपना-अपना काम करना पड़ता है.'
राजे ने आगे कहा था, 'वनवास सिर्फ भगवान श्रीराम की जिंदगी का ही हिस्सा नहीं है. हर इंसान के जीवन में कहीं न कहीं वो वनवास आ ही जाता है. पर आता है तो वो जाता भी है. रामजी ने हमें यह बताया है कि अपने जीवन के अंदर धैर्य क्या चीज हो सकती है. हमें धैर्य को समझने की जरूरत है. दुनिया में कोई चीज स्थायी नहीं है. अगर वो आई है तो जाएगी भी. इसीलिए किसी को मन के अंदर गठान मानकर बैठने की जरूरत नहीं है. क्योंकि तराजू का पलड़ा कभी ऊपर होता है, कभी नीचे.'