एक समय ऐसा था जब मरुस्थल में खेती करना बहुत मुश्किल था और यहाँ के किसान रोजी रोटी व जीवन यापन के लिये सिर्फ खरीफ की बारानी फसलो पर ही निर्भर रहते थे लेकिन वर्तमान समय में जैसलमेर के किसान उन्नत कृषि तकनीक के इस्तेमाल से नए आयाम स्थापित कर रहे है। आज जिले में किसान खजूर की खेती में नवाचार अपनाकर लगातार मुनाफा ले रहे हैं। तापमान 50 डिग्री हो या एक डिग्री फिर भी खजूर की खेती सहजता से की जा सकती है।
बंजर जमीन व निम्न गुणवत्ता वाले पानी में भी इसकी खेती की सकती है। खजूर की खेती के लिए शुष्क जलवायु अनुकूल होने के कारण अन्य राज्यों के किसानों के लिए भी जैसलमेर जिला खजूर की खेती के लिए पहली पसन्द बन रहा है। राज्य के किसान ही नही अपितु गुजरात से जैसलमेर आये किसान ने भी जोश एवं जूनून से मेहनत कर अपनी अलग पहचान बनाई है।
गुजरात के किसान अनिल संतानी एवं दिलीप गोयल ने खजूर की खेती से प्रभावित होकर तथा इसके लिए अनुकूल शुष्क जलवायु को ध्यान में रखकर जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील के लोहटा गाँव में वर्ष 2012 में खुनेजी, बरही एवं खलास उन्नत किस्म के लगभग 1500 पौधों का बगीचा लगाया। किसान ने बताया की शुरुआत में खजूर के 1300 पौधों से प्रति पौधा लगभग 30-40 किलो उपज मिली, जिसे 40-50 रूपये प्रति किलो के दर से बेचने पर सालाना 12 लाख रूपये सकल आय प्राप्त हुई। इस कमाई से किसान का खर्चा भी नही निकल पा रहा था। किसान वर्ष 2018 में कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण के संपर्क में आए। केन्द्र के द्वारा आयोजित होने वाले वाले प्रशिक्षणों एवं अन्य प्रसार गतिविधियों में भाग लेकर खजूर उत्पादन एवं इसके प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन के बारे में जानकारी ली।
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर किसान ने खजूर में नवाचार को अपनाते हुए खजूर को डोका अवस्था में न बेचकर उनका प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन करके पिण्ड तैयार किया एवं उनकी ग्रेडिंग व पैकेजिंग करके बेचना शुरू किया। जिससे सालाना आय में आशातीत वृद्धि हुई। किसान की सकल आय 12 लाख से बढ़कर 23 लाख प्रतिवर्ष तक पहुच गई। इसके अलावा प्रतिवर्ष 1500 रूपये प्रति सकर्स की दर से सेपलिंग बेचकर 3 से 4 लाख रूपये अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे है। आज इस प्रगतिशील किसान के खजूर की मांग राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में ही नही अपितु ऑनलाईन मार्केटिंग प्लेटफोर्म के माध्यम से देश विदेशों से भी आ रही है और कीमत भी अच्छी मिल रही है। इनके खजूर “हेवन वेली” ब्रांड नाम से विश्व भर में बिक रहा है। इनके द्वारा गुणवत्ता निर्धारण के लिए एफएसएसएआई के सभी मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है। इनके यहाँ पैदा होने वाले खजूर का स्वाद बहुत अच्छा होने की वजह से यह लोगों को बहुत पसंद आ रहा है।
खजूर स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण अरब देशों से आने वाले खजूर की मांग की जगह लेने में न सिर्फ कामयाब हुए है बल्कि गुणवत्ता में भी स्थान बनाया है। किसान ने बताया की अच्छी कीमत मिलने से पिछले साल अपने खेत पर 200 खजूर के पोधे और लगाये है। खजूर के पौधो को शुरुवात में बहुत मेहनत और देखरेख की आवश्यकता होती है परन्तु एक बार लेने के बाद ये पौधा लगभग 100 सालो तक फल देता है और नियमति आय का साधन बन जाता है। जैसलमेर का अनुकूल वातावरण व खजूर के पोधे में बहुत कम कीट एवं बीमारियों और अधिक समय तक फल देने की वजह से किसान इसकी खेती करने में रूचि दिखा रहे है। प्रगतिशील किसान अनिल संतानी एवं दिलीप गोयल खजूर की खेती करके खुद तो अच्छा मुनाफा ले ही रहे है साथ ही फार्म से 10 से अधिक लोगों को वर्षभर रोजगार देकर क्षेत्र के किसानो को खजूर की खेती करने के लिये आकर्षित कर रहे है।
कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ दशरथ प्रसाद ने बताया कि केन्द्र के प्रशिक्षणों एवं प्रसार गतिविधियों का परिणाम क्षेत्र में दिखाई देने लगा है। जैसलमेर की शुष्क जलवायु खजूर की खेती के लिए बहुत अनुकूल है। इस के आधार पर प्रगतिशील किसान अनिल संतानी एवं दिलीप गोयल ने न केवल खजूर की खेती को अपनाया अपितु नवाचार जैसे प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन व ऑनलाइन मार्केटिंग को शामिल कर एक नया आयाम स्थापित किया है जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणादायी होगा।