राजस्थान में जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास को लेकर मंगलवार को जयपुर के होटल रॉयल ऑर्चिड में एक ऐतिहासिक कार्यशाला आयोजित हुई। “ जैव विविधता एवं संरक्षकता: पारिस्थितिक मनोविज्ञान एवं पारिस्थितिक स्वास्थ्य मॉनिटरिंग की समझ” विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में पर्यावरणविदों, प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों ने भागीदारी की। कार्यक्रम का आयोजन रणबंका बालाजी ट्रस्ट (जोधपुर) और फाउंडेशन फॉर इकॉलॉजिकल सिक्योरिटी (भीलवाड़ा) ने संयुक्त रूप से किया। कार्यशाला का उद्देश्य राजस्थान की पारिस्थितिकी, प्राकृतिक संसाधनों और सामुदायिक जीवन को बचाने के लिए एक ठोस कार्ययोजना तैयार करना रहा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव अभय कुमार ने कहा कि भूजल पुनर्भरण, अरावली का संरक्षण और कॉमन्स का प्रभावी प्रबंधन राजस्थान की सतत प्रगति के लिए निर्णायक है। उन्होंने कहा, “हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ स्थानीय ज्ञान और परंपराओं को जोड़कर काम करना होगा।” सुप्रसिद्ध नेचुरलिस्ट पीटर स्मेटासेक ने अपनी चर्चित प्रस्तुति ‘द बटरफ्लाई स्टोरी’ में जैव विविधता की संवेदनशीलता को समझाया। उन्होंने कहा, “तितलियाँ और छोटे जीव हमें यह सिखाते हैं कि हर छोटा बदलाव पूरी पारिस्थितिकी को प्रभावित करता है। जैव विविधता को समझे बिना संरक्षण अधूरा है।”
कार्तिकेय सिंह राठौड़, रणबंका बालाजी ट्रस्ट ने कहा, “यह कार्यशाला संवाद का मंच भर नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। अरावली राजस्थान की प्राणवायु है और इसके संरक्षण के बिना राज्य का भविष्य अधूरा रहेगा। सामूहिक भागीदारी से ही एक ठोस रोडमैप बन सकेगा।”
कार्यशाला की मुख्य झलकियाँ
भूजल पुनर्भरण और कॉमन्स प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा
पारिस्थितिक स्वास्थ्य मॉनिटरिंग की नई रूपरेखा का प्रस्तुतीकरण
ग्रामीण आजीविका और संरक्षण पर “सेवेंट्री” के अनुभव साझा
“एकोज़ फ्रॉम अरावली” नामक मल्टीमीडिया प्रस्तुति
जैव विविधता और रोजगार के संतुलन पर पैनल चर्चा
स्थानीय समुदायों की सहभागिता को सतत विकास की कुंजी बताया गया
निष्कर्ष और आगे की राह
कार्यशाला में सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकला कि जल संकट, मरुस्थलीकरण और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण जैसी चुनौतियों का समाधान केवल समुदाय आधारित संरक्षण और सामूहिक जिम्मेदारी से संभव है। प्रतिभागियों ने संकल्प लिया कि आने वाले समय में संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास को एक साथ लेकर ठोस कार्ययोजनाएँ बनाई जाएँगी। आयोजकों ने कहा कि यह पहल केवल शुरुआत है। आगे राज्यभर में स्थानीय समुदायों के साथ ऐसी कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँगी, ताकि संरक्षण और विकास के बीच संतुलन कायम रहे।