देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बहस लंबे समय से चलते आ रही है। जिसमें बहुत सारे मत सामने आते जा रहे हैं। अब ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है। समिति में सरकार ने आठ सदस्यों को शामिल किया है। जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और राज्यसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी का नाम इनमें शामिल हैं।
इन सब के अलावा समिति में 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी शामिल हैं। वहीं केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य और विधि विभाग के सचिव नितेन चंद्र समिति के सचिव होंगे।
साथ ही सरकार ने समिति के कामकाज की अधिसूचना भी जारी की। जिसमें साफ निर्देशित किया है कि समिति यह भी देखेगी कि इसके लिए राज्यों की सहमति कितनी जरूरी है या कितने राज्यों की सहमति जरूरी होगी।
वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस ने इस समिति को संसदीय लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश बताया है। समिति में शामिल कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कमेटी में शामिल होने से इनकार करते हुए कहा कि नतीजे पहले से ही तय हैं।
कमेटी में अपना नाम आने के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर कहा कि मैं इस समिति में काम नहीं करूंगा, क्योंकि इस समिति का गठन ऐसे किया गया है कि नतीजे पहले से ही तय हो सकें।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आम चुनाव से ठीक पहले ऐसी समिति सरकार के गुप्त मंसूबों की ओर इशारा करती है, जिसमें संवैधानिक रूप से एक संदिग्ध व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को शामिल नहीं करना संसदीय लोकतंत्र का अपमान है।
आपको बता दें कि दिसंबर 2015 में संसद की स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को दो चरणों मे कराने की सिफारिश की थी। शनिवार को जारी अधिसूचना में सरकार ने विधि अयोग की 170 वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि हर साल और बिना तय समय के होने वाले चुनाव रुकने चाहिए।
सरकार ने कहा कि एक बार फिर 1951-52 से 1967 तक चली एक देश एक चुनाव की व्यवस्था की ओर लौटना चाहिए। अलग चुनाव अपवाद की स्थिति में होना चाहिए। नियम यह हो कि लोकसभा और विधानसभाओं के लिए चुनाव में पांच साल में एक बार होना चाहिए।