21 मई 1991, धनु के चेहरे के भाव देखकर सुरक्षा घेरे में तैनात अनुसूइया को शक हुआ। उसने उसे वहीं रोक दिया, लेकिन तभी उन्होंने कहा, 'सभी को आने दीजिए।' धनु उनके पास गई और चंदन की माला पहनाई। उसके बाद वह पैर छूने के लिए झुकी। वे उसे ऊपर उठा ही रहे थे कि तभी जोर से धमाका हुआ और इस धमाके में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सहित 18 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। देश ने एक ऐसा लीडर खो दिया जो यदि ज़िंदा होता तो भारत की तस्वीर में कुछ अलग ही रंग भरे होते। राजीव गांधी की हत्या 1991 में हुई, लेकिन उनकी हत्या की साजिश 1983 में बनना शुरू हो गई थी। या फिर ये कहें कि राजीव गांधी के एक बयान ने लिट्टे की नींद उड़ा दी थी जिसके बाद लिट्टे ने उनकी हत्या की साजिश रचना शुरू किया
देश के उस महान नेता की जयंती है जिसने सिर्फ अपनी भारत माता के बारे में सोचा जिसका सपना था देश को विश्व पटल पर सबसे ऊपर रखने का। 21 मई 1991 को लिट्टे की एक साजिश का शिकार राजीव गाँधी बने। राजीव गाँधी की शख्सियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लिट्टे की ये योजना कामयाब नहीं होती, तो लिट्टे की दूसरी योजना भी तैयार थी। लिट्टे ने राजीव गांधी को मारने के लिए महिलाओं को अपना मानव बम हथियार बना लिया था। धनु के बाद शुभा और अतिरै इस वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार थी।
राजीव गाँधी की हत्या का षड़यंत्र रचने में अतिरै का नाम भी सबसे ऊपर लिया जाता है। अतिरै वो महिला थी जिसने अपना नाम बदलकर सोनिया रखा और दिल्ली के मोतीबाग इलाके में रहने लगी।
ये एक ऐसा हत्याकांड था जिसने पुरे देश को दहला दिया और सवाल खड़ा कर दिया कि जब हमारे देश में हमारे प्रधानमंत्री सुरक्षित नहीं है तो फिर एक आम नागरिक कैसे सुरक्षित हो सकता है। ऐसा क्या हुआ कि लिट्टे भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मारने के लिए इतना बेसब्र था और ऐसी क्या बात थी कि ये तीनों महिलाएं अपनी जान को न्योछावर करने के लिए तैयार हो गई।
राजीव गांधी की हत्या का राज श्रीलंका की आज़ादी में छुपा है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहली लोग बहुसंख्यक थे, लेकिन यहां बड़ी संख्या में तमिल भी थे और वे वहां लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहे थे। साल 1972 में श्रीलंका का संविधान बना था, जहां बौद्ध को देश का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया था। जिसके कारण तमिल लोग हर तरह से देश में हाशिये पर जाते रहे। जिसका परिणाम ये हुआ कि हाशिये पर धकेले गए तमिलों ने हथियार उठा लिए।
एक तमिल युवा वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने संगठन बनाया, जिसका नाम लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे रखा गया, लेकिन 80 के दशक तक आते-आते लिट्टे की पहचान एक आतंकी संगठन के तौर पर होने लगी।
23 जुलाई 1983,, वो दिन, जिसके बाद श्रीलंका में गृहयुद्ध छिड़ गया था, क्योंकि लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के 13 जवानों की हत्या कर दी थी। ये लड़ाई अब सिंहली और तमिलों के बीच हुई जिसमें श्रीलंका की सरकार भी इस लड़ाई के मैदान में उतर आई। इस गृहयुद्ध के चलते साल 1987 में भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक शांति समझौता हुआ। जिसमें तय हुआ कि भारत, लिट्टे से हथियार रखवा देगा और शांति कायम करेगा।
समझौते वाले दिन ही भारत ने अपनी सेना श्रीलंका भेज दी थी जिसका नाम इंडियन पीस कीपिंग फाॅर्स यानी IPKF रखा गया। इसके बाद लिट्टे भी अपने हथियार डालने को तैयार हो गया था। लिट्टे के कई आतंकी सरेंडर करने लगे थे, लेकिन इसी बीच अक्टूबर महीने में श्रीलंका की सेना ने लिट्टे के दो कमांडरों को पकड़ लिया गया। उन्हें पलाली में श्रीलंका की सेना और IPKF की साझा विरासत में रखा गया। IPKF लिट्टे के दोनों कमांडरों को श्रीलंका सरकार को सौंपने के लिए मान गया था, लेकिन यही उन कमांडरों ने साइनाइड खाकर अपनी जान दे दी। जिसके बाद लिट्टे और IPKF के रिश्ते बुरी तरह से बिगड़ गए।
13 अक्टूबर 1987 को भारतीय फाॅर्स ने 'ऑपरेशन पवन' चलाया। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए। इस दौरान भारतीय सेना श्रीलंका में तीन साल तक रही और 24 मार्च 1990 को IPKF का आखिरी बेड़ा भी श्रीलंका से वापस लौट आया।
माना जाता है कि श्रीलंका में भारतीय सेना का ये अभियान ही राजीव गांधी की हत्या का कारण बना। लिट्टे के आतंकियों का मकसद अब बदला लेना था।
राजीव गांधी की सरकार के समय ही श्रीलंका में भारतीय सेना भेजी गई थी। वहीं दूसरी तरफ, श्रीलंका में जब गृह युद्ध चल रहा था, उसी दौरान लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को दिल्ली बुलाया गया। जहां उनकी मुलाक़ात राजीव गांधी से हुई। कहा जाता है कि ये मुलाकात अच्छी नहीं रही, तभी प्रभाकरण ने सोच लिया था कि इसका बदला लिया जाएगा।
साल 1989 में राजीव गांधी की सरकार गिर गई थी और बाद में भारत में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही। इसी बीच अगस्त 1990 में राजीव गांधी ने एक इंटरव्यू में श्रीलंका के साथ हुए शांति समझौते का समर्थन किया। उन्होंने अखंड श्रीलंका की बात कही और इसी से लिट्टे का अलग ईलम का सपना टूट गया।
राजीव गांधी के श्रीलंका के प्रति रुख से लिट्टे को डर था कि उनका प्रधानमंत्री बनना उसके लिए घातक हो सकता है। लिट्टे के इसी डर ने उनकी हत्या की साजिश रची। इस साजिश के मुख्य पात्र थे- लिट्टे का मुखिया वेलुपिल्लई प्रभाकरण, लिट्टे की खुफिया इकाई का मुखिया पोहू ओम्मान, महिला इकाई की मुखिया अकीला और शिवरासन, यह जानना ज़रूरी है कि राजीव गांधी की हत्या का मास्टरमाइंड शिवरासन ही था।
राजीव गांधी के इंटरव्यू के कुछ महीनों बाद लिट्टे के आतंकी अलग-अलग टुकड़ियों में शरणार्थी के तौर पर भारत आने लगे। 1 मई 1991 को शिवरासन अपने साथ धनु, उसकी सहेली शुभा समेत 9 लोगों को भारत लेकर आया। 12 मई को सभी ने वीपी सिंह की रैली में प्रैक्टिस की और 21 मई को ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।
अतिरै दिल्ली में कहां रहेगी, इस काम के लिए शिवरासन ने श्रीलंका सरकार के रिटायर्ड अफसर कनगासाबापति को लगाया। कनगासाबापति ने मोतीबाग के मकान नंबर ए-233 को किराये पर लिया। ये घर राजीव गांधी के घर 10 जनपथ से मात्र 8 किलोमीटर दूर था। वहीं पोट्टू ओम्मान इस पूरी वारदात को दिल्ली में अंजाम देना चाहता था, लेकिन शिवरासन को पूरा यकीन था कि वो इसे श्रीपेरंबुदूर में ही अंजाम दे देगा। मई 1991 में एक संदेश में पोट्टू ओम्मान ने शिवरासन से पूछा, 'दिल्ली में क्यों नहीं?' तब शिवरासन ने जवाब दिया, 'मुझे यकीन है कि मैं इसे यहीं यानी तमिलनाडु में ही अंजाम दे सकता हूं।'
लिट्टे की इस आतंकवादी घटना के चलते देश ने एक ऐसा प्रधानमंत्री खोया जो देश की तकदीर और तस्वीर बदलने का हौंसला रखता था। राजीव गाँधी को हमने 32 साल पहले खो दिया था। लेकिन राजीव गाँधी की शख्सियत आज भी देश के हर वर्ग और हर नेता को सीख देती है।