हनुमान बेनीवाल का बयान: इस बार मेरा उस प्रत्याशी से मुकाबला है, जिसकी कांग्रेस पार्टी में अंदर तक बड़ी घुसपैठ है
ज्योति मिर्धा का बयान: कोई रड़क निकालना चाहता हो तो बाद में निकाल लेना, लेकिन ये चुनाव मोदी का है, इसलिए सभी साथ दें
राजस्थान की राजनीति में ऊंट किस करवट बैठगा ये तो 4 जून को परिणाम के बाद ही साफ होगा, लेकिन इससे पहले नागौर की सीट हॉट सीट नहीं वीआईपी सीट में बदल चुकी है, क्योंकि यहां अब लड़ाई वर्चस्व की बन गई है, नागौर सीट पर BJP प्रत्याशी ज्योति मिर्धा और कांग्रेस-RLP गठबंधन के प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल पूरा दम दिखा रहे हैं, लेकिन दोनों को ही चिंता है तो अपनों से दगा मिलने की, जीत हार का दम भरने की बात करें तो अब बात सिर मुंडवाने और दाढ़ी-मूंछ कटवाने तक पहुंच चुकी हैं
1- नागौर सीट की अगर बात की जाए तो यहां तीन बातों को समझना काफी जरुरी है, पहला यह की नागौर सीट पर मुकाबला एक ही समाज के दो बड़े चेहरों के बीच है, जहां जाट वोटर्स तो अपना वर्चस्व रखते ही हैं लेकिन मूल ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटर्स यहां निर्णायक की भूमिका अदा करेंगे
2- पिछले दो लोकसभा चुनाव के परिणाम देखें तो यहां बीजेपी मजबूत नजर आई थी, और हनुमान बेनीवाल ने भी बीजेपी का दामन थामते हुए जनता के दिलों में जगह बनाते हुए जीत हासिल करने में कामयाबी पाई थी, लेकिन इस बार कांग्रेस और आरएलपी का गठबंधन चुनावी टक्कर को काफी रोमांचक बना चुका है
3- तीसरी बात जो ना सिर्फ पूरे देश में साथ ही हर कस्बे और गांव में चर्चा का विषय बनी है वो है अयोध्या में भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाना, और ये दोनों बातें ही नागौर में काफी चर्चा का विषय बनी हुई है हालांकि गांवों में मायरा, जाति और किसान के मुद्दे भी काफी हावी है
नागौर सीट की अगर बात की जाए तो अभी तक नागौर में हनुमान बेनीवाल के समर्थन में कांग्रेस के किसी दिग्गज की रैली या सभा देखने को नहीं मिली है, हालांकि स्थानीय नेताओं का साथ हनुमान बेनीवाल को मिल रहा है, लेकिन बीते दिन मनमुटाव के चलते एक साथ 404 कांग्रेस पदाधिकारियों का कांग्रेस छोड़ना हनुमान को कमजोर जरुर कर सकता है, इसके साथ ही ज्योति मिर्धा की बात करें तो वहां ज्योति मिर्धा को फिलहाल RSS से जुड़े लीडर एक्टिव नजर आ रहे हैं
नागौर सीट से जहां हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा चुनावी प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं तो वहीं नागौर की जनता के मन की माने तो स्थानीय मुद्दे लोकसभा चुनाव में ज्यादा असर डालते हुए नजर आ रहे हैं, किसी का किसी को ट्रांसफर की चिंता है तो किसी को अपना घर बनाने की तो किसानों को अपनी उपज का सम्मानजनक मेहनताना मिलने की, तो वहीं जाट लैंड के रूप में जाना जाने वाली नागौर सीट में अल्पसंख्यक और मूल वोटर्स तो अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा ही सकते हैं साथ ही अन्य जातियों का मत भी किसी के विपक्ष में ना पड़े इसको लेकर भी दोनों ही नेता कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं