अब तक हम देश को 'भारत' और 'इंडिया', दोनों ही नामों से बुलाते थे, लेकिन क्या अब सिर्फ 'भारत' ही हो जाएगा। दरअसल G-20 की 18वीं समिट इस साल 9 और 10 सितंबर दिल्ली मे होने जा रही है। इस साल भारत पहली बार G-20 की मेजबानी करने जा रहा है। इसके लिए काफी जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। दिल्ली को सजाया जा रहा है। ग्लोबल इकोनॉमी में करीब 80 फीसदी से ज्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाले जी-20 की अध्यक्षता करना भारत के लिए एक बड़ा मौका है। G-20 की मीटिंग को लेकर विवाद खडा हो गया है।
दरअसल इस बैठक के लिए डिनर में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति भवन से एक निमंत्रण पत्र भेजा गया है। जिसमे देश के नाम को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है, दरअसल इस विवाद की शुरुआत कांग्रेस के उस आरोप से हुई है, जिसमें कहा गया कि जी20 समिट के डिनर के निमंत्रण पत्र में President Of Bharat लिखा है। जबकि इसे President Of India होना चाहिए। इसके साथ ही एक चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मोदी सरकार देश का नाम बदलने वाली है? क्या देश के नाम से 'इंडिया' हटाने वाली है मोदी सरकार? विपक्ष ने इस पर हमला बोला है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, "तो ये खबर वाकई सच है. राष्ट्रपति भवन ने 9 सितंबर को जी20 रात्रिभोज के लिए सामान्य 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' की बजाय 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' के नाम पर निमंत्रण भेजा है। अब संविधान का अनुच्छेद 1 पढ़ा जा सकेगा कि 'भारत, जो इंडिया था, राज्यों का एक संघ होगा'. अब इस 'राज्यों के संघ' पर भी हमला हो रहा है।''
इसके अलावा आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने भी पोस्ट करते हुए निशाना साधा है। वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक पोस्ट में लिखा- ‘रिपब्लिक ऑफ भारत- खुश और गौरान्वित महसूस कर रहा हूं। हमारी सभ्यता अमृत काल की ओर तेजी से बढ़ रही है।’
वहीं बीजेपी सांसद हरनाम सिंह ने कहा, 'पूरा देश मांग कर रहा है कि हमें इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। अंग्रेजों ने इंडिया शब्द को एक गाली के तौर पर हमारे लिए इस्तेमाल किया, जबकि भारत शब्द हमारी संस्कृति का प्रतीक है। मैं चाहता हूं कि संविधान में बदलाव होना चाहिए और भारत शब्द को इसमें जोड़ना चाहिए।'
बता दे कि मोदी सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इस सत्र को लेकर अब तक कुछ साफ नहीं है। लेकिन चर्चा है कि इस सत्र में मोदी सरकार देश का नाम सिर्फ 'भारत' करने और 'इंडिया' शब्द हटाने को लेकर बिल लेकर आ सकती है।
हमारे देश के दो नाम हैं। पहला- भारत और दूसरा- इंडिया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है, 'इंडिया दैट इज भारत,' इसका मतलब हुआ कि देश के दो नाम हैं। हम 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया' भी कहते हैं और 'भारत सरकार' भी। अंग्रेजी में 'भारत' और 'इंडिया', दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। हिंदी में भी 'इंडिया' लिखा जाता है।
1947 में जब आजादी मिली तो भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनाई गई। संविधान सभा ने जब मसौदा तैयार किया तो इस पर देश के नाम को लेकर तीखी बहस हुई। ये बहस 18 नवंबर 1949 को हुई थी। बहस की शुरुआत संविधान सभा के सदस्य एचवी कामथ ने की थी। उन्होंने अंबेडकर समिति के उस मसौदे पर आपत्ति जताई थी, जिसमें देश के दो नाम थे- यानी इंडिया और भारत।
कामथ ने अनुच्छेद-1 में संशोधन का प्रस्ताव रखा। अनुच्छेद-1 कहता है- 'इंडिया दैट इज भारत'. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि देश का एक ही नाम होना चाहिए। उन्होंने 'हिंदुस्तान, हिंद, भारतभूमि और भारतवर्ष' जैसे नाम सुझाए।
नाम को लेकर आपत्ति जताने वालों में कामथ अकेला नाम नहीं थे। सेठ गोविंद दास ने भी इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था, 'इंडिया यानी भारत' किसी देश के नाम के लिए सुंदर शब्द नहीं है। इसकी बजाय हमें 'भारत को विदेशों में इंडिया से नाम भी जाना जाता है' शब्द लिखना चाहिए। उन्होंने पुराणों से लेकर महाभारत तक का जिक्र किया। गोविंद दास ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने देश की आजादी के लड़ाई 'भारत माता की जय' के नारे के साथ लड़ी थी। इसलिए देश का नाम भारत ही होना चाहिए। बीएम गुप्ता, श्रीराम सहाय, कमलापति त्रिपाठी और हर गोविंद पंत जैसे सदस्यों ने भी देश का नाम सिर्फ भारत ही रखे जाने का समर्थन किया था। उस दिन देश के नाम को लेकर कमलापति त्रिपाठी और डॉ. बीआर अंबेडकर के बीच तीखी बहस भी हुई थी। हालांकि, ये सारी बहस का कुछ खास नतीजा नहीं निकला। और जब संशोधन के लिए वोटिंग हुई तो ये सारे प्रस्ताव गिर गए। आखिर में अनुच्छेद-1 ही बरकरार रहा. और इस तरह से 'इंडिया दैट इज भारत' बना रहा।
संविधान का अनुच्छेद-1 कहता है, 'इंडिया, दैट इज भारत, जो राज्यों का संघ होगा.' अनुच्छेद-1 'इंडिया' और 'भारत', दोनों को मान्यता देता है। अब अगर केंद्र सरकार देश का नाम सिर्फ 'भारत' करना चाहती है तो उसे अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के लिए बिल लाना होगा। अनुच्छेद-368 संविधान को संशोधन करने की अनुमति देता है। कुछ संशोधन साधारण बहुमत यानी 50% बहुमत के आधार पर हो सकते हैं। तो कुछ संशोधन के लिए 66% बहुमत यानी कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत पड़ती है। अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार को कम से कम दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी।
वैसे तो देश का नाम सिर्फ 'भारत' करने और 'इंडिया' शब्द हटाने की मांग लंबे समय से होती रही है। 2010 और 2012 में कांग्रेस के सांसद शांताराम नाइक ने दो प्राइवेट बिल पेश किए थे। इसमें उन्होंने संविधान से इंडिया शब्द हटाने का प्रस्ताव रखा था। वही साल 2015 में योगी आदित्यनाथ ने भी प्राइवेट बिल पेश किया था। इसमें उन्होंने संविधान में 'इंडिया दैट इज भारत' की जगह 'इंडिया दैट इज हिंदुस्तान' करने का प्रस्ताव दिया था।
आपको बता दे कि देश का नाम सिर्फ भारत रखने की मांग सुप्रीम कोर्ट भी जा चुकी है। मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने देश का नाम 'इंडिया' की जगह सिर्फ 'भारत' रखने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। उस समय तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा था, 'भारत और इंडिया? आप भारत बुलाना चाहते हैं तो बुलाइए, अगर कोई इंडिया कहना चाहता है तो उसे इंडिया कहने दीजिए। 'चार साल बाद 2020 में फिर से सुप्रीम कोर्ट में ऐसी ही याचिका दायर हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया। याचिका खारिज करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा था, 'भारत और इंडिया, दोनों ही नाम संविधान में दिए गए हैं। संविधान में देश को पहले ही भारत कहा जाता है।'
अब देखना ये होगा कि देश का नाम इंडिया' हट कर भारत कब होगा