हर बार की तरह आज संपूर्ण देशभर का सरकारी कार्मिक 18वीं लोकसभा चुनाव को सकुशल संपन्न कराने में आचार संहिता की अक्षरसह पालना करते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है , भले ही विद्यार्थियों का शिक्षण कार्य व परीक्षा प्रभावित हो अथवा स्वयं कार्मिकों की पदोन्नति व तबादलो का इंतजार करना पड़े, देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सरकारी आदेशों की पालना बखूबी कर रहे हैं
हालांकि इससे पूर्व राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी आचार संहिता हटे हुए 4 महीने भी नहीं हुए और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई तथा इसके बाद पंचायत राज के चुनाव को संपन्न करने के लिए आचार संहिता की पालना में जुटना होगा, इस प्रकार मात्र 15 महीने की समय अवधि में ही तीन बार लगने वाली आचार संहिताओं की पालना में कार्मिक अपने मूल कार्य शिक्षण को छोड़कर देश के लोकतंत्र को मजबूत करने में लगे रहेंगे, यह बार-बार लगने वाली चुनावी आचार संहिताएं विभिन्न विभागों के कार्मिकों के लिए जरूरी तबादला प्रक्रिया एवं पदोन्नति की नीति निर्माण में रोड़ा बन रही है,
अकेले राजस्थान प्रदेश के लगभग 30 हजार तृतीय श्रेणी शिक्षक विगत 4 वर्षों से अपने विभागीय पदोन्नति का इंतजार कर रहे है , अतिरिक्त विषय में स्नातक डिग्रीधारी की डीपीसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे, मामले के कारण करीब 30000 शिक्षकों की पदोन्नति अधर झूल में अटकी हुई है , पदोन्नति नहीं होने से तृतीय श्रेणी शिक्षक वरिष्ठ अध्यापक पद पर पदोन्नति नहीं हो पा रहे है, और सरकार इस मसले का हल नहीं निकल पा रही है , अब नई सरकार से उम्मीद है कि 4 वर्षो से डीपीसी का इंतजार कर रहे शिक्षकों को राहत मिल पाएगी
दूसरी ओर वर्षों से बाहरी जिलों में बैठे शिक्षक तबादलों के इंतजार में है, प्रदेश के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने तृतीय श्रेणी शिक्षकों की मांग पर 18 अगस्त 2021 को शाला दर्पण पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन मांगे थे, जिसमें प्रदेश के 33 जिलों के कुल 80 हजार 781 शिक्षकों ने आवेदन कर तबादला करने की मांग की थी , इनमें से गहलोत सरकार द्वारा लक्ष्मणगढ़, सीकर व नाथद्वारा, राजसमंद को छोड़कर एक भी तृतीय श्रेणी शिक्षक का तबादला नहीं किया , अब शिक्षकों को नई सरकार से उम्मीद है कि सरकार बीच का रास्ता निकाल कर लंबित पड़ी डीपीसी की अभिलंब पूरी करेगी
शिक्षक नेता कैलाश सामोता रानीपुरा बताया कि पहले से डिग्री प्राप्त कर चुके शिक्षकों को पात्र मानकर, डीपीसी में शामिल कर लेना चाहिए , भविष्य में इस प्रकार की डिग्री करने वालों को डीपीसी में शामिल नहीं करने का नियम बनाना चाहिए, ताकि न तो कोई डिग्री करेगा और ना ही पात्र माना जाएगा , सामोता का कहना है कि शिक्षा विभाग में पहले डीपीसी में अतिरिक्त विषय में स्नातक उत्तीर्ण को पदोन्नति के लिए पात्र माना जाता रहा है , लेकिन पिछली सरकार ने बिना शिक्षा सेवा नियमों में संशोधन किए, एक कमेटी के फैसले का हवाला देते हुए, डीपीसी में अतिरिक्त विषय में स्नातक अभ्यर्थियों को पात्र करार दे दिया , इस कारण पदोन्नति से वंचित हुए करीब 700 शिक्षक हाई कोर्ट चले गए , न्यायालय की एकल पीठ ने डीपीसी प्रक्रिया को प्रतिक्षा में रख दिया , इसके बाद सरकार खंडपीठ में गई और खंडपीठ में भी अतिरिक्त विषय स्नातक शिक्षकों की पदोन्नति कर बंद लिफाफे में डीपीसी करने पर सहमति दे दी , इस पर शिक्षक उच्च न्यायालय की शरण में चले गए और बंद लिफाफे में डीपीसी करने का स्थगन ले आए , इस प्रकार प्रदेश के हजारों शिक्षक अपनी पदोन्नति की बाट जो रहे है , प्रदेश के हजारों शिक्षकों का ना तो तबादला हो रहा और ना ही डीपीसी, जिसके चलते शिक्षक वर्ग में आक्रोश है
सरकारों का बार-बार धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन और ध्यान आकर्षण करने के बाद भी सरकारी कार्मिकों की मूलभूत विभागीय समस्याओं जैसे समयबद्ध पदोन्नति व तबादला नीति की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है , शायद अब नाउम्मीदी ही समझे कि जब तक "एक देश, एक चुनाव पद्धति" लागू नहीं होगी और इन बार-बार लगने वाले आचार संहिताओं से निजात नहीं मिलेगी और तबादलों के लिए नीति निर्माण नहीं होगा , जब तक केंद्र व राज्य सरकारों के कार्मिकों के लिए कोई सामूहिक रूप से कोई स्पष्ट व समयबद्ध तरीके से पूर्ण होने वाली विभागीय पदोन्नति तबादला नीति बनकर लागू नहीं हो जाती तब तक शिक्षा का उद्देश्य हासिल नहीं हो सकता और ना ही कार्मिकों की योग्यता व क्षमता का सदुपयोग हो सकता