पूरे देश में दिवाली के त्योहार का इंतजार हर किसी को रहता है। इसको धूमधाम से मनाने के लिए लोग एक महीने पहले से ही घरों को सजाने में, खरीदारी करने में, दोस्तों व रिश्तेदारों को गिफ्ट भेजने में जुट जाते हैं। दिवाली का त्योहार हिन्दू धर्म के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है।
इस दिन भगवान श्री राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास काटने के बाद अयोध्या लौटे थे। दिवाली के दिन लोग घरों में दिए जलाते हैं। पटाखे जलाते हैं और खुशिया मनाते हैं। देश भर में जहां एक तरफ लोग दिवाली के पर्व पर घरों को रोशन कर मिठाई बांट कर खुशी मनाते हैं तो वहीं, दूसरी तरफ भारत के एक गांव में दिवाली के दिन लोग शोक मनाते हैं। ये सुन कर आप हैरान जरुर होंगे, लेकिन ये सच है।
दरअसल, मिर्ज़ापुर के एक गांव में लोग दिवाली के दिन शोक मनाते हैं। इस दिन घरों में दीपक नही जलाते, न ही कोई जश्न मनाते। हैरान करने वाली बात तो यह है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों इस गांव के लोग दिवाली के दिन जश्न की जगह शोक मानते हैं तो चलिए बताते हैं आपको,
मिर्जापुर जनपद के मड़िहान तहसील के अंतर्गत एक गांव आता है जिसका नाम है अटारी। इस गांव के दिन यहां के दिवाली जश्न मनाने की जगह शोक मनाते हैं। इस गांव के अलावा आस-पास कई गाँवों में भी लोग दिवाली के दिन शोक मानते हैं। इन सभी गांवों में रहने वाले चौहान समाज की करीब आठ हजार की आबादी सैकड़ों साल से इस परंपरा को निभाती चली आ रही है। सैंकड़ों साल से यह अनोखी परंपरा आज तक चल रही है।
दरअसल, इन गांवों में बसे चौहान समाज के लोग खुद को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान का वशंज बताते हैं। चौहान समाज के लोगों का मानना है कि दिवाली के दिन ही मोहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वी राज चौहान की हत्या की थी। इतना ही नहीं, गौरी ने शव को गंधार में ले जाकर दफनाया भी था। पृथ्वीराज चौहान के कत्ल का शोक चौहान वंशज के लोग आज भी मनाते हैं और इसी वजह से यहां के लोग इस दिन अपने घरों में दीपक नहीं जलाते हैं।