‘आदरणीय प्रधानमंत्री जी तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिताजी पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या खुद वहां रहना चाहते हैं। इस बात का फैसला यदि आप जल्दी करते तो बेहतर होगा। वैसे मैं हमेशा से यह मानती रही हूं कि तीन मूर्ति भवन रहने के लिहाज से बहुत बड़ा है, लेकिन पंडित नेहरू की बात अलग थी। उनसे मिलने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी। हालांकि, अब स्थिति ऐसी नहीं रहेगी। आपसे मिलने वालों की कुछ खास तादाद नहीं होगी।
ये बातें 1964 में इंदिरा गांधी ने उस वक्त के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को लिखे पत्र में कही थीं।
इसके बाद शास्त्री ने तीन मूर्ति भवन को नेहरू म्यूजियम बना दिया था। अब हम आपको बताते है कि तीन मूर्ति भवन क्या है और इसे नेहरू म्यूजियम क्यों बनाया गया। तीन मूर्ति भवन के बाहर एक चौक है। जिसके बीचों-बीच तीन मूर्तियां बनी हैं। तीनों मूर्तियों की वजह से यह भवन तीन मूर्ति भवन के नाम से भी जाना जाता है। इन तीनों मूर्तियों को ब्रिटिश स्कल्पचर लियोनॉर्ड जेनिंग्स ने बनवाया था। यहां मौजूद तीन सैनिकों की मूर्तियां मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद राज्य के शस्त्रधारी सैनिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। लेकिन बाद मे इसे नेहरू म्यूजियम बना दिया। नेहरू म्यूजियम बना देने के पीछे का कारण है कि साल 1947 में आजादी के बाद यह फैसला लिया गया कि भारत के प्रधानमंत्री तीन मूर्ति भवन में रहेंगे। उस समय के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल औचिनलेक को उसी समय दूसरे भवन में शिफ्ट कर दिया गया। इसके बाद देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे अपना आवास बनाया और उनके साथ उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी इसी घर में रहने लगी।
अब बात करते है नेहरू मेमोरियल संग्रहालय के इतिहास के बारे मे, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय को 1929-30 में शाही राजधानी के तौर पर सर एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था। ये अंतिम ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ का आधिकारिक घर था और इसे तीन मूर्ति हाउस के नाम से जाना जाता था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद ये देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का आवास बन गया। जवाहरलाल नेहरू यहां 16 वर्षों तक रहे और उनकी मृत्यु के बाद सरकार ने उनके सम्मान में तीन मूर्ति हाउस को एक संग्रहालय और पुस्तकालय में बदलने का फैसला लिया। इसका उद्घाटन 14 नवंबर 1964 को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था। इसके प्रबंधन के लिए 1966 में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और लाइब्रेरी सोसाइटी का गठन किया गया था।
अब हम आपको बताते है कि पीएम मोदी ने इस संग्रहालय का नाम बदलने का प्रस्ताव कब रखा था। साल 2016 में पीएम मोदी ने एक प्रस्ताव रखा था कि तीन मूर्ति परिसर में देश के सभी प्रधानमंत्रियों को समर्पित एक म्यूजियम का निर्माण किया जाएगा। उसी साल 25 नवंबर को NMML की 162वीं बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। बीते साल 21 अप्रैल को प्रधानमंत्री संग्रहालय को जनता के लिए खोल दिया गया था।
हाल ही में सोमवार ,14 अगस्त को नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय का नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय कर दिया गया। इसी दिन से इसका आधिकारिक रूप से नाम बदल गया। इससे पहले 15 जून को नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी सोसाइटी की एक विशेष बैठक आयोजित की गई थी। इसमें नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री संग्रहालय और लाइब्रेरी सोसाइटी’ करने का प्रस्ताव लाया गया था। विशेष बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी।
वही नेहरू शब्द हटाए जाने को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सियासी घमासान छिड़ गया है। दोनों पार्टियों के नेता जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नेहरू मेमोरियल म्यूजियम का नाम बदलने पर प्रतिक्रिया दी है। गुरुवार (17 अगस्त) को उन्होंने कहा कि नेहरू जी पहचान उनके कर्म हैं, उनका नाम नहीं। वही दूसरी और BJP नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि पीएम मोदी ने कांग्रेस सहित देश के सभी प्रधानमंत्रियों को सम्मानित करने की कोशिश की है। नकवी ने कहा कि पीएम मोदी ने उन सभी महापुरुषों को सम्मान दिया है। जिन्हें कांग्रेस ने भुला दिया था। नकवी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सोचती है कि केवल एक परिवार ने ही राष्ट्र के निर्माण में योगदान दिया। उन्होंने सभी संस्थानों का नाम अपने सदस्यों के नाम पर रखा, लेकिन वर्षो से चला आ रहा एक नाम पर विवाद अब नाम बदलने से ख़त्म हो गया है।