भारत ने G-20 सम्मलेन का सफल आयोजन किया। देश की महान ताकत भारत के सामने नतमस्तक नजर आए। इन सब गेस्ट में शामिल थे कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो। जिनके वापस कनाडा पहुंचते ही हालत गंभीर हो गए। मामला हम सब जानते हैं और वो है खालिस्तान को बढ़ावा देना और भारत पर आरोप लगाना। अब कनाडा, खालिस्तान और खालिस्तानी आतंकियों को बढ़ावा क्यों दे रहा है ये किसी को अभी तक समझ नही आया।
इन सब में एक शब्द सबसे ज्यादा सुनाई दिया तो वो है खालिस्तान। खालिस्तान को लेकर लोगों की दिलचस्पी भी बढ़ गई है, जो लोग ये नहीं जानते हैं कि ये आंदोलन क्या है और कैसे शुरू हुआ, वो गूगल के सहारे इसकी जानकारी ले रहे हैं।
आज हम आपको बता रहे हैं कि खालिस्तान का क्या मतलब होता है और ये नाम कैसे चर्चा में आया...
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कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या मामले में भारतीय एजेंसियों का हाथ हो सकता है। इसके बाद भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में कड़वाहट आ गई है। अब खालिस्तान ने खुलेआम भारत का झंडा जला दिया और उसको पैरों पर लगाया वो कनाडा के राजकीय कार्यालयों के बाहर।
मार्च 1940, मुस्लिम लीग के घोषणापत्र के जवाब में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने कुछ पैम्पलेट छपवाए। इसमें 'खालिस्तान' शब्द का पहली बार इस्तेमाल हुआ था। खालिस्तान मतलब- 'खालसाओं का देश'।
खालिस्तान आंदोलन की जड़ें भारत में पूरी तरह से खत्म कर दी गई हैं। जिसके बाद अब विदेशों में बैठकर कुछ लोग इसकी आड़ में कई तरह के आंदोलन खड़े कर रहे हैं। भारत के खिलाफ लगातार नफरत फैलाने का काम करते हैं। खालिस्तान दरअसल भारत से अलग एक देश बनाने की मांग है। पंजाब को भारत से अलग करने के आंदोलन को ही खालिस्तान आंदोलन का नाम दिया गया।
खालिस्तान अरबी भाषा के खालिस शब्द से लिया गया है। खालिस्तान का मतलब वो जमीन जो खालसा की हो। यानी जिस जगह पर सिर्फ सिख रहते हों। 1940 में पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया गया, जब डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने लाहौर घोषणापत्र के जवाब में एक पैम्फलेट छापा था। हालांकि ऐसा नहीं था कि इससे पहले अलग देश बनाने की मांग न उठी हो, साल 1929 से ही सिखों के लिए अलग देश की मांग उठ रही थी। कांग्रेस अधिवेशन में मास्टर तारा सिंह ने ये मांग उठाई थी।
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इसके बाद 70 के दशक में चरण सिंह पंक्षी और डॉ. जगदीत सिंह चौहान के नेतृत्व में खालिस्तान की मांग तेज हो गई। इसके बाद 1980 में इसके लिए खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद भी बनाया गया। इसके बाद पंजाब के कुछ युवाओं ने एक दल खालसा नाम का संगठन तैयार किया, भिंडरावाले भी इसी आंदोलन से निकला था। जिसके आतंकियों को खत्म करने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया। इसके बाद खालिस्तानी आंदोलन की जड़ें भारत से उखड़ने लगीं।
भारत के बाद कनाडा ऐसा देश है जहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सिख आबादी रहती है। 1980 के दशक में जब पंजाब में खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन अपने चरम पर था, तब इसे वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता थी। कहा जाता है कि पाकिस्तान की आईएसआई ने मौके का फायदा उठाया और भारत से कनाडा गए अलगाववादियों के साथ मिलकर इसकी आग देश में भड़काई। इसका कारण कनाडा की कानूनी प्रणाली के कमजोर प्रत्यर्पण कानूनों को माना गया।
कहा जाता है कि आईएसआई ने पाकिस्तान में रह रहे अलगाववादी नेताओं को कनाडा में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया। एजेन्सी ने कनाडा में पहले से ही रह रहे अलगाववादियों को आंदोलन के लिए वित्तीय सहायता भी जुटाई।
आपको बता दे कनाडा के लगाए गए सभी आरोपों पर भारत के विदेश मंत्रालय ने करारा जवाब दिया है। मंत्रालय ने कनाडा के आरोपों को बेतुका और पूर्वाग्रह से ग्रसित करार दिया। भारत ने कहा कि इस तरह के आरोप सिर्फ उन खालिस्तानी आतंकी और कट्टरपंथियों से ध्यान हटाने के लिए है। जिन्हें लंबे समय से कनाडा में शरण दी जा रही है, जो भारत की क्षेत्रीय एकता और अखंडता के लिए लगातार खतरा बने हुए हैं।
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अब अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन समेत कई देशों में खालिस्तान समर्थक लगातार भारत के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं और विदेश में बैठकर भारत की धरती पर अशांति फैलाने की कोशिश में जुटे हैं। अब देखना ये होगा कि क्या हमारी सरकार इस आंदोलन को रोक पाती है या लगातार खालिस्तान की वजह से हमारे संबंध पड़ोसी देशों के साथ खराब होते जाते हैं।