साल 1988 मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने अपने खिलाफ भड़के विद्रोह से उबरने के लिए भारत से मदद मांगी। जिसके लिए भारत ने एक ऑपरेशन कैक्टस चलाया और लगभग 400 सैनिक मालदीव की राजधानी माले में भेजे। जहां विद्रोह पर काबू पाकर राष्ट्रपति गयूम को सुरक्षित निकाला गया।
भारत और मालदीव के बीच संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने मालदीव को काफी जल्दी सहायता भी उपलब्ध करवाई थी। पिछले कुछ समय में मालदीव से अच्छे संबंधों के दौरान भारत ने साल 2021 में वहां दो अरब डॉलर की सहायता देने की पेशकश की थी। जिसे मालदीव ने स्वीकार नहीं किया गया।
बता दे भारत ने मालदीव को बीते दस सालों में दो हेलीकॉप्टर और एक छोटा विमान दिया है। साल 2021 में मालदीव के डिफेंस ऑफिसर ने ये खुलासा किया था कि भारत के 75 सैन्य अधिकारी मालदीव में रहते हैं और भारतीय एयरक्राफ्ट का संचालन और रखरखाव करते हैं।
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लेकिन हाल ही में मालदीव में हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भारत के लिए अहम और नई चुनौती माने जा रहे हैं। चुनाव में 54 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर चीन समर्थक मोहम्मद मोइज्जू ने मालदीव की सत्ता हासिल कर ली है। मोइज्जू का चुनावी नारा 'इंडिया आउट' था। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कई बार भारतीय सैनिकों को मालदीव से निकालने की मांग भी की थी। अब जब चीन समर्थक मोइज्जू चुनाव जीत गए हैं तो ये माना जा रहा है कि अब मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को वहां से निकालने का भी फैसला करेंगे। जिससे मालदीव और भारत के संबंधों पर गहरा प्रभाव भी पड़ेगा। इसके साथ ही हिंद महासागर से भी भारत की नजर हटेगी जहां चीन नजरें गड़ाए बैठा है।
मालदीव चीन के बड़े कर्ज के तले दबा हुआ है। मालदीव की राजधानी माले में बना हुआ इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जोड़ने वाला पुल भी चीन ने बनाया है। शायद एक कारण ये भी है कि मालदीव चीन के बड़े कर्जे के तले दबा हुआ है। मालदीव में चीन की 'वन बेल्ट, वन रोड' योजना का भी खुलकर समर्थन किया गया। माना ये भी जाता है कि चीन ने वहां के इंफ्रास्ट्रक्टर में लगभग एक बिलियन डॉलर का कर्ज देकर निवेश किया हुआ है।
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बता दे साल 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प के बाद से भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई। दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चला आ रहा है। साल दर साल चीन के मोर्चे पर भारत की चुनौतियां बढ़ती जा रही है। सुरक्षा जानकारों की मानें तो ये तनाव हिन्द महासागर में भी महसूस हो रहा है, क्योंकि दोनों ही देश इस इलाके में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं।
कुछ दिन पहले ही चीनी गतिविधियों पर भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था "पिछले 20-25 सालों पर नजर डालें तो हिंद महासागर में चीनी नौसैनिकों की मौजूदगी और गतिविधि में लगातार बढ़ोतरी हुई है, लेकिन जब आपके पास बहुत बड़ी नौसेना होगी, तो वह कहीं न कहीं अपनी तैनाती के संदर्भ में भी दिखाई देगी। हालांकि मौजूदा समय में मालदीव के रणनीतिकार दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे।
लेकिन इस बीच एक सवाल उठता है कि मालदीव भारत के लिए क्यों जरुरी है। भारत के लिए मालदीव बहुत अहम है, क्योंकि रणनीतिक लिहाज से हिंद महासागर के एक बड़े क्षेत्र पर नजर रखने का जरिया है। दरअसल मालदीव हिंद महासागर में स्थित एक प्रायद्वीपीय देश है। इसके लोकेशन की वजह से ही ये इतना अहम है। इस देश दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम शिपिंग लेन पर स्थित है और इसी कारण व्यापारिक महत्व भी ज्यादा है।
वही आपको बता दे हाल ही में मालदीव की सत्ता हासिल करने वाले मोइज्जू ने चीन की वित्त पोषित परियोजनाओं के लिए पूर्व राष्ट्रपति यामीन की भी जमकर सराहना की थी। अब देखने लायक ये होगा कि सत्ता में आने के बाद मोइज्जू क्या कूटनीतिक फैसले लेते हैं।