फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका का एक डायलॉग था कि “मेरी मां को बोलना, मैंने हार नहीं मानी, मैंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी।“ ये डायलॉग भले ही अनुप्रिया पर मूवी में फिल्माया गया था, लेकिन उन्होंने इसे असल ज़िन्दगी में भी जिया है।
अनुप्रिया गोयनका का जन्म कानपुर के एक सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में हुआ। उनके पापा के गारमेंट निर्यात करने का बिजनेस है। वे 4 भाई-बहन हैं। उनका परिवार कानपूर में 14 कमरों वाले बंगले में रहता था, 4-5 गाड़ियां थीं और नौकर-चाकर भी थे, लेकिन कभी किसी ने ये नहीं सोचा था कि ये सब कुछ एक पल में हमारी ज़िन्दगी से गायब हो जाएगा।
उन्होंने अपने पापा की मदद करने के लिए बिजनेस के साथ-साथ कॉल सेंटर में भी काम किया। वहीं उन्हें अपनी मम्मी का आदेश था कि बिजनेस तो देखना ही है और उन्होंने मम्मी का कहना टाला भी नहीं। इसी वजह से वो दिन में ऑफिस जाती और रात में कॉल सेंटर में काम करती। जिसकी वजह से वह महज 3 से 4 घंटे ही सो पाती थी।
अनुप्रिया गोयनका ने 12वीं की गर्मी की छुट्टी के दिनों में शौक के चलते दो महीने NSD की वर्कशॉप अटेंड की थी। हालांकि वो कॉर्पोरेट लाइफ में खुश थी तो कभी अभिनय की दुनिया को पेशा बनाने के बारे में नहीं सोचा।
ज़िन्दगी में सब कुछ अच्छा चलने के बाद भी गोयनका ने इस काम से ब्रेक लेने के बारे में सोचा, क्योंकि वो थोड़ा क्रिएटिव फील्ड में वक्त गुजारना चाहती थी और कुछ करना चाहती थी। क्रिएटिव फील्ड में उन्होंने सबसे पहले थिएटर करना चुना। ये उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा निर्णय था।
असमंजस की स्थिति में अनुप्रिया ने काफी वक़्त ख़राब किया कि कॉर्पोरेट और एक्टिंग लाइन में से क्या चुनूं।
इस बीच उन्होंने एक्टिंग वर्कशॉप की और इस 10 दिन की वर्कशॉप ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी। इन 10 दिनों में, उन्हें एक्टिंग से प्यार हो गया।
फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका का एक डायलॉग था कि “मेरी मां को बोलना, मैंने हार नहीं मानी, मैंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी।“ ये डायलॉग भले ही अनुप्रिया पर मूवी में फिल्माया गया था, लेकिन उन्होंने इसे असल ज़िन्दगी में भी जिया है।
अनुप्रिया गोयनका का जन्म कानपुर के एक सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में हुआ। उनके पापा के गारमेंट निर्यात करने का बिजनेस है। वे 4 भाई-बहन हैं। उनका परिवार कानपूर में 14 कमरों वाले बंगले में रहता था, 4-5 गाड़ियां थीं और नौकर-चाकर भी थे, लेकिन कभी किसी ने ये नहीं सोचा था कि ये सब कुछ एक पल में हमारी ज़िन्दगी से गायब हो जाएगा।
उन्होंने अपने पापा की मदद करने के लिए बिजनेस के साथ-साथ कॉल सेंटर में भी काम किया। वहीं उन्हें अपनी मम्मी का आदेश था कि बिजनेस तो देखना ही है और उन्होंने मम्मी का कहना टाला भी नहीं। इसी वजह से वो दिन में ऑफिस जाती और रात में कॉल सेंटर में काम करती। जिसकी वजह से वह महज 3 से 4 घंटे ही सो पाती थी।
अनुप्रिया गोयनका ने 12वीं की गर्मी की छुट्टी के दिनों में शौक के चलते दो महीने NSD की वर्कशॉप अटेंड की थी। हालांकि वो कॉर्पोरेट लाइफ में खुश थी तो कभी अभिनय की दुनिया को पेशा बनाने के बारे में नहीं सोचा।
ज़िन्दगी में सब कुछ अच्छा चलने के बाद भी गोयनका ने इस काम से ब्रेक लेने के बारे में सोचा, क्योंकि वो थोड़ा क्रिएटिव फील्ड में वक्त गुजारना चाहती थी और कुछ करना चाहती थी। क्रिएटिव फील्ड में उन्होंने सबसे पहले थिएटर करना चुना। ये उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा निर्णय था।
असमंजस की स्थिति में अनुप्रिया ने काफी वक़्त ख़राब किया कि कॉर्पोरेट और एक्टिंग लाइन में से क्या चुनूं।
इस बीच उन्होंने एक्टिंग वर्कशॉप की और इस 10 दिन की वर्कशॉप ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी। इन 10 दिनों में, उन्हें एक्टिंग से प्यार हो गया।